काले पानी की सजा– सेल्यूलर जेल के बारे में पूरा इतिहास हिंदी में (Kala Pani Cellular Jail in hindi)
वैसे तो भारतीय सविधान में बहुत से ऐसे कानून है जिसके तहत अपराध करने वाले अपराधी को उनके द्वारा किए जुर्म के लिए बराबर सजा देने का प्रावधान है और इसमें से सबसे ज्यादा खतरनाक सजा काला पानी की होती है। तो आज हम आपको एक ऐसी ही सजा के बारे में बताने जा रहे है जिसका नाम सुनते ही हर अपराधी डरने लगता है, कांप उठता है और इस सजा के बारे में सोचकर अपराध करने के बारे में हजार बार सोचता है। तो आज हम बात कर रहे है काले पानी की सजा के बारे में जो सेलुलर (Cellular) जेल में दी जाती है जी जेल अंडमान निकोबार में बनाई गई है।
नाम – काला पानी सेल्यूलर
जेल निर्माण शुरू -1896
जेल निर्माण पूर्ण -1906
जेल निर्माण कर्ता – ब्रिटिश सरकार
स्थान – अंडमान निकोबार द्वीप
काले पानी की सजा क्या है?
पहले इस जेल (Cellular Jail) को काला पानी की सजा के नाम से जाना जाता था, क्योंकि अंग्रेजों ने इस जेल को इस तरह बनाया था जहां से बाहर निकल पाना किसी भी कैदी के लिए नामुमकिन के बराबर था. इस जेल में कैदियों को इतनी कड़ी से कड़ी सजा दी जाती थी, जिसे वे वहां से भागने लायक ही नहीं रहते थे और कैदियों के लिए दूसरी जेल ऐसी बनाई गई थी की वहां से कोई भी निकल कर भाग जाना ना के बराबर था।
सेलुलर जेल का निर्माण अंग्रेजों के द्वारा 1857 की पहली क्रांति के दौरान किया गया था और इस जेल का निर्माण करने में 10 साल से भी अधिक का समय लग गया था. और यह जेल अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है।
सेल्यूलर जेल का इतिहास (History Of Cellular Jail)
1. इस जेल का दुबारा निर्माण सन 1896 में शुरू किया गया था जिसे 1906 तक पूरा कर लिया गया था।
2. ब्रिटिश सरकार का इस जेल को बनाने का उद्देश्य था भारतीय क्रांतिकारियों को इस जेल में कैद करके रखा जाए इस लिए इस जेल को बनवाया गया था और इस जेल को बनने में करीबन 10 साल का समय और 8 लाख रुपए तक लग गए थे।
3. इस जेल को बनाने वाले आर्किटेक्चर (Architecture) का नाम मैक्लकर था.
4. इस जेल का निर्माण होते ही इसमें 200 भारतीय क्रांतिकारियों को लाया गया था, जो पूरे देश में आजादी को लेकर आंदोलन कर रहे थे और अपने हाथ में मशाल लेकर चल रहे थे।
5. इस जेल के निर्माण के दौरान इसमें एक डेविड नाम का जेलर हुआ करता था, जो भारतीयों पर बहुत जुल्म ढहाता था वह अब तक का सबसे ज्यादा कठोर जेलर माना जाता है क्योंकि उसने कैदियों को नर्क से बदतर सजाएं दी हुई हैं।
6. इस जेल का नाम सेल्यूलर जेल इसलिए रखा गया क्योंकि इसमें बहुत सारे सेल (Cell) बनाए गए थे और इसकी जो आकृति बनाई गई है वो एक स्टारफिश (Starfish) की तरह दिखने वाली बनाई गई है स्टारफिश (Starfish) के चार पैर होते हैं इसी तर्ज पे इस सेल्यूलर जेल में भी 7 अलग-अलग हिस्से हिस्से बनाए गए हैं और हर हिस्से में तीन मंजिल की जेल बनाई गई है।
7. ज्यादा पुरानी इमारत होने और भूकंप आने की वजह से 7 हिस्से में से 4 हिस्से खत्म हो चुके है, वर्तमान समय में इसके सिर्फ तीन ही भाग बचे हुए हैं।
8. इसमें कई सारी सेल्स Cells होती थीं जिसमे कैदियों को अलग-अलग सेल्स में कैदी बना कर रखा जाता था, इसमें एक सेल ऐसा भी था जिसमे कैदियों की सजा को निर्धारित (Determined) किया जाता था, लेकिन उनको सजा तब दी जाती थी जब उन्हें अच्छा खाना और रहने के लिए साफ सुथरी जगह दी जाती थी. और उन पर किसी भी प्रकार का बुरा व्यवहार या अत्याचार नहीं किया जाता था।
9. इस जेल में सभी धर्मो के लिए कुछ ऐसे नियम बनाए गए थे जिनके अनुसार सभी धर्मो के लिए एक धार्मिक जगह बनाई गई थी जहां पर जाकर कैदी अपने धर्म के लिए भगवतगीता, ग्रंथ भी पढ़ सकते थे और उन कैदियों की अंतिम इच्छा भी पूरी की जाती थी और मरने वाले कैदी के धर्म के अनुसार ही उनका अंतिम संस्कार भी किया जाता था।
10. इस जेल में अलग से एक फांसी देने के लिए कमरा भी बनाया गया था, उस कमरे के ऊपर कैदी को फांसी दी जाती थी और फांसी देने के बाद उसकी लाश को नीचे कमरे में फेंक दी जाती थी जिसमे बहुत सी लाशे पड़ी होती थी बाद में उन लाशों को बाहर निकाल कर उनके धर्मो के अनुसार जला या दफना दिया जाता था।
11. उस समय ब्रिटिश सरकार ने कितने लोगों को फांसी दी थी इसका आज भी कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है क्योंकि उन्होंने वहा से जाने से पहले सभी मौजूद दस्तावेजों को जला या नष्ट कर दिया गया था।
12. सेल्यूलर जेल के अंदर लगभग 695 जेल हैं प्रत्येक जेल का साइज 52.7 मीटर है। हर जेल के अंदर सिर्फ एक ही कैदी को रखा जाता था और जेल को कुछ इस तरह बनाया गया है की एक कैदी दूसरे कैदी से न तो बात कर सकता है और ना ही उसे देख सकता है।
13. अगर एक कैदी दूसरे कैदी से बात करता हुआ पकड़ा जाता था तो उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाती थी। उस वक्त जिन – जिन क्रांतिकारियों ने उस जेल में सजा काटी है, उन सभी जेलों के बाहर उन क्रांतिकारियों के नाम सहित फोटो भी लगाए गए है. उन सभी जेलों के नाम अब उन सभी क्रांतिकारियों के नाम से ही जाना जाता है।
14. जेल में प्रवेश करते ही सामने एक खुला मैदान पड़ा हुआ है. वहा पर 2 तरह की ज्योत जलाई गई है. उनमें से एक ज्योति उन शहीदों के लिए जलाई गई है जो सेल्यूलर जेल में कैदी रहकर शहीद हो गए थे, इस ज्योत को पूरे 24 घंटे जला कर रखा जाता है।
15. इसी ज्योत के बिल्कुल सामने ही एक वाइट मार्बल से शहीदी स्मारक बनाया गया है यह शहीदी स्मारक पूरे भारत में शहीद हुए हमारे योद्धा सेनानियों की याद में बनाया गया है. इस से पहले यहां पर एक लकड़ी का हॉस्पिटल बनाया गया था, लेकिन उसे बाद में तोड़कर शहीद स्मारक का बना दिया।
16. सेल्यूलर जेल का इतिहास वहा जाकर कोई भी अपनी आंखों से देख सकता है, सेल्यूलर जेल में एक ऐसा लाइटिंग स्टेज शो बनाया गया है. उस लाइटिंग स्टेज शो में सेल्यूलर जेल से जुड़ा पूरा इतिहास उस लाइटिंग शो के माध्यम से वहा आने वाले पर्यटक, दर्शको को दिखाया जाता है।
17. इस जेल के अंदर एक पीपल का बहुत पुराना पेड़ भी है. जो ब्रिटिश सरकार के समय का है इस पेड़ को लगभग 100 वर्ष से भी ज्यादा हो चुके है।
18. इस सेल्यूलर जेल को एक टापू पर बनाया गया है इसलिए ही जेल के चारों और की दीवारें बहुत कम ऊंचाई की बनाई गई है. इन दीवारों की ऊंचाई मात्र 3 मीटर तक बनाई गई है इस जेल से कैदी का आसानी से भाग जाना आसान है लेकिन वह ज्यादा दूर तक नही जा सकता क्योंकि जेल के चारो तरफ पानी ही पानी और इस को तैर कर पार करना असंभव है।
19. ब्रिटिश सरकार द्वारा बहुत से ऐसे हथियार बनाए गए थे. जिस से वो अपराधियों को इन हथियारों द्वारा सजा देते थे. ये हथियार आज भी इस जेल में प्रदर्शनी के लिए रखे गए हैं।
20. इस जेल को बनाने के लिए ईंटे बर्मा देश से मंगवाई गई थी, क्योंकि यह ईंटे पूरी तरह से लाल है. इस जेल का आधा निर्माण तो ब्रिटिश सरकार ने कारीगरों द्वारा करवा लिया गया था, लेकिन इस जेल का आधा निर्माण वहां पर लाए जाने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों से भी करवाया जाता था।
21. 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर अपना कब्जा जमा लिया था. कब्जा जमा लेने के बाद वहां पर मौजूद सभी ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया था।
22. जापान ने इस पर कब्जा करने के बाद इसके दो भागो को पूरी तरह से गिरा दिया गया था और उस जगह पर अपने लिए बंकर का निर्माण करवाया गया था।
23. द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ही भारत को आजादी मिली थी और आजादी मिलते ही भारत ने अंडमान निकोबार को अपने अंतर्गत ले लिया था और वहा की हर एक चीज को एक सरकारी संग्रहालय बनाकर वही रख दिया गया था।
24. यह जेल इस बात की भी गवाह है की यहां बहुत सारे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों पर अत्याचारों हुए थे. जिनमें से बाबूराव सावरकर, वीर दामोदर सावरकर, सोहन सिंह, गोपाल भाई परमानंद, योगेंद्र शुक्ला, वामन राव जोशी, मौलाना फजल ए हक खैराबादी, बटुकेश्वर दत्त,आदि।
25. सेल्यूलर जेल के आसपास जितने भी खंडर थे उनको वहा से हटा कर उस जगह पर 1963 में गोविंद बल्लभ पंत के नाम से हॉस्पिटल की स्थापना की गई. निर्माण पूरा हो जाने के बाद वहा पर सभी मरीजों के लिए मुफ्त इलाज दिया गया. और यहां पर पांच सौ से अधिक बेड की सुविधा है और 60 से अधिक डॉक्टर इस हॉस्पिटल में मरीजों की मुफ्त सेवा कर रहे हैं।
26. सेल्यूलर जेल में भारत के स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास साफ साफ नजर आता है. इस जेल को देखने के लिए हर वर्ष लाखों सैलानी अंडमान निकोबार जाते हैं और भारत के इतिहास को जानने की कोशिश करते है और वहा पहुंच कर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हैं।
काले पानी की सजा को नरक की सजा के बराबर क्यों कहा जाता है?
काले पानी की सजा को इसलिए नर्क की सजा कहा गया क्योंकि वहां पर मौजूद सभी कैदियों को बहुत भयानक सजा दी जाती थी।
जैसे कोल्हू के बैल से तेल निकाला जाता था उस जगह इन कैदियों से तेल निकलवाने का काम करवाया जाता था, अगर किसी भी अपराधी से कोई गलती हो जाती थी तो उसे अलग ही तरीके की सजा दी जाती थी जैसे उसे इतने कोड़े मारे जाते थे कि वह ना तो बैठ ही पाता था और ना ही लेट सकता था. और उनको यह सजा फ्लॉकिंग फ्रेम (Flocking Frame) के जरिए बेल्ट द्वारा बांध कर दी जाती थी।
अंग्रेजो का इन सब सजा को देने का मकसद भारतीय क्रांतिकारियों का मनोबल तोड़ने के लिए किया करते थे. जो भी कैदी अधिक गलती किया करता था या फिर उनके विरुद्ध जाता था तो उसे फांसी दे दी जाती थी।
सेल्यूलर जेल में रहने वाले कैदियों के लिए तीन तरह की बेड़ियां बनाई गई थी जिसमें से एक बेड़ी चेन की होती थी और यह बिल्कुल फ्लैक्सिबल (Flexible) होती थी. लेकिन दूसरे प्रकार की बेड़ी ऐसी होती थी जो की हाथ पैर और घुटनों तक को बांध कर रखती थी. इसके बंधने से कैदी ठीक तरह से उठ बैठ भी नहीं पाता था. और तीसरी बेड़ी जो होती थी यह सबसे अलग और सबसे पीड़ा देने वाली होती थी. इस बेड़ी को उस व्यक्ति को पहनाई जाती थी जिसे सबसे ज्यादा कड़ी सजा देनी होती थी. इस सजा को झेलने के बाद कैदी ठीक से उठना बैठना तो दूर की बात है वह ठीक तरह से चल भी नहीं पाता था।
वहां पर बंद सभी कैदियों को मजदूरों की तरह दिन-रात काम करवाया जाता था. और वहा पर उन कैदियों के साथ जेलर और सैनिकों द्वारा बहुत ज्यादा अत्याचार किया जाता था।
देश के वीरों ने सदैव ही देश के लिए बहुत बड़े ज्यादा बलिदान दिए है. इनमे से एक सेल्यूलर जेल में सजा काटना भी है। रविंद्र नाथ टैगोर और महात्मा गांधी ने सन् 1938 में बड़े संघर्ष के बाद जेल के जेलर को सभी कैदियों को रिहा करने पर मजबूर कर दिया था. लेकिन 6 मार्च 1868 को अंग्रेजों द्वारा किए जाने अत्याचारों से परेशान होकर वहां के 238 कैदी जेल से फरार हो गए थे लेकिन आपको पता है वो ज्यादा दूर नहीं जा सकते क्योंकि जेल के चारो तरफ पानी ही पानी था और इस वजह से वे कैदी जल्द ही पकड़े गए थे. उनमें से एक कैदी ने तो डर के मारे आत्महत्या कर ली और उन 238 कैदियों में से 87 कैदियों को उस जेल के जेलर ने फांसी की सजा सुनाई गई थी क्योंकि उनके द्वारा बनाए गए नियमो को तोड़कर भागने की जरुरत की गई थी।
आशा करता हु दोस्तो आपको “काले पानी की सजा” का इतिहास जानकर अच्छा लगा होगा अगर आपको अच्छा लगा हो तो आप इसे आप अपने दोस्तो और रिश्तेदारों को शेयर कर सकते हो और इस पोस्ट से जुड़ा कोई भी सवाल आप हमसे पूछना चाहते हो तो आप हमे कॉमेंट के माध्यम से पूछ सकते है